Freedom Fighters Of India For Knowledge
Let’s read interesting about freedom fighters of india
हम सब भारतीय जानते हे की भारत को स्वतंत्र कराने में अनेक क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया और भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाया।
देश को स्वतंत्रा की सौगात देने में अनेक वीरों ने अपना महत्पूर्ण योगदान दिया।
हम सात ऐसे Freedom fighters of india के बारे जानेगे जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई।
मंगल पांडे ( जन्म 19 जुलाई,1827 – मृत्यु 8 अप्रैल,1857)

देश के वीर जवान मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई,1827 को उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के नगवा गांव में ब्राह्मण वंश में हुआ था।
वीर जवान के पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम श्रीमती अभय रानी था।
मंगल पांडे 22 वर्ष की आयु में 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हो गए थे।
कलकत्ता के पास स्थित बैरकपुर की सैनिक कैंप में “34 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” के सिपाही थे।
शूरवीर मंगल पांडे ने भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फंका।
लेकिन सर्वप्रथम आवाज बुलंद कर अपने साहस का परिचय दिया।
यह बात उस समय की है जब बंगाल की सेना में एनफिल्ड पी-53 राइफल को शामिल किया गया।
एनफील्ड राइफल के कारतूसों को दांतों से खींचना पड़ता था।
भारतीय सिपाहियों में अफवाह फैल गई कि गोली में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है।
ब्रिटिश सरकार भारतीय सैनिकों का धर्मभ्रष्ट करना चाहते थे।
भारतीय सैनिकों ने एनफिल्ड पी−53 राइफलों को इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया।
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया गया और वो वीरगति को प्राप्त हो गए।
ईस्ट इंडिया कंपनी का बुरा समय शुरू हो चूका था।
रानी लक्ष्मीबाई ( जन्म 19 नवंबर,1828 – मृत्यु 18 जून,1858 )

“क्या खूब लड़ी मर्दानी वो झांसी वाली रानी”
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी जिले में मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से सब उन्हें “मनु” कहते थे।
रानी लक्ष्मीबाई की माता का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था।
“मनु” ने बचपन में शास्त्रों के साथ शस्त्र का भी ज्ञान लिया।
1842 में मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव नेवलकर के साथ हुआ और मनु झाँसी की रानी बनीं।
विवाह के बाद मणिकर्णिका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई रख दिया गया।
रानी लक्ष्मीबाई ने 1851 में बेटे को जन्म दिया, लेकिन चार महीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था, उन्हें दत्तक पुत्र लेने का सुझाव दिया गया, दत्तक पुत्र का नाम “दामोदर राव” रखा गया।
21 नवंबर 1853 को झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी।
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने राज्य का पूरा ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया।
राजा गंगाधर राव के कर्ज़ को रानी के वार्षिक ख़र्च में से काटने का आदेश जारी किया।
1857 के संग्राम को देश कभी नहीं भूलेगा, रानी लक्ष्मीबाई ने सेना में महिलाओं को शामिल किया और उन्हें युद्ध के लिए तैयार किया।
1857 में झाँसी पर दो पड़ोसी राज्य के राजाओं ने आक्रमण कर दिया, जिन्हें रानी लक्ष्मीबाई ने सफल होने नहीं दिया।
1858 के आरंभ में ब्रिटिश सेना ने पुरे झाँसी को घेर लिया।
लगभग दो 15 दिन तक चले युद्ध के बाद ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर क़ब्ज़ा कर लिया।
लेकिन रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों चख्मा देखर बच निकली और कालपी पहुंचकर तात्या टोपे से मिली।
रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे और ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया गया।
ग्वालियर स्थित कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 में वीरगति को प्राप्त हुईं।
रानी लक्ष्मीबाई बहादुर, सुंदर, चालाक और पराक्रमी थी।
अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना को कभी नहीं देखा था।
लाला लाजपत राय (जन्म 28 जनवरी,1865 – मृत्यु 17 नवंबर,1928)

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा जिले में जैन परिवार में हुआ था।
क्रांतिकारी लाला लाजपत राय को “पंजाब केसरी” नाम से भी जाना जाता है।
पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना लाला लाजपत राय ने किया था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लाला लाजपत राय गरम दल के प्रमुख नेता थे।
बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ लाजपत राय जैसे त्रिमूर्ति को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लाल-बाल-पाल के नाम से संबोधित किया जाता था।
30 अक्टूबर 1928 को लाजपत राय जी ने लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन में भाग लिया।
इसलिए साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज में वह बुरी तरह से घायल हो गए थे।
17 नवंबर, 1928 को क्रांतिकारी लाला लाजपत राय जी ने आखरी सांस ली और वीरगति को प्राप्त हो गए।।
चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी पर हुए जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का फ़ैसला किया।
17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से मारकर लालाजी पर हुआ जानलेवा लाठीचार्ज का बदला पूरा किया।
लाला लाजपत राय जी ने कहा – मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।
(freedom fighters of india)
चंद्रशेखर आज़ाद ( जन्म 23 जुलाई,1906 – मृत्यु 27 फरवरी,1931 )

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 में हुआ हे, जन्म स्थान भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) हे।
क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी हे, उन्होंने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से अपनी पढ़ाई की।
क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का जगरानी देवी था।
चंद्रशेखर आज़ाद के पूर्वज उत्तर प्रदेश के बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) बैसवारा से थे।
अमृतसर में 13 अप्रैल 1919, को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ गहरा प्रतिशोध पैदा किया।
उन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन में भाग लिया।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर आज़ाद ने लाहौर में सॉंडर्स की हत्या करके लिया।
भगत सिंह सहित दिल्ली पहुंच कर तत्कालीन केंद्रीय संसद में बम कांड को अंजाम दिया।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचंद्र चटर्जी सहित चंद्रशेखर आज़ाद ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों के साथ “हिन्दुस्तानी प्रजातन्त्रिक संघ” का गठन किया।
प्रयागराज में 27 फरवरी, 1931 चंद्रशेखर आज़ाद वीरगति को प्राप्त हो गए हैं।
(freedom fighters of india)
भगत सिंह ( जन्म 28 सितंबर,1907 – मृत्यु 23 मार्च,1931 )

क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब (अब पाकिस्तान) के लायलपुर जिले के बंगा गाँव में सिख परिवार में हुआ था।
क्रांतिकारी भगत सिंह के पिता नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ गहरा प्रतिशोध पैदा किया।
लाहौर के राष्ट्रीय कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए “नौजवान भारत सभा” की स्थापना की थी।
बाद में नौजवान भारत सभा को चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में संस्थापित गदर दल में विलय कर दिया गया।
भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से प्रभावित थे।
17 दिसंबर 1928 में भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मार दीया।
वीर भगत सिंह गाँधी जी का सम्मान करते थे, किन्तु उनके विचार गाँधी जी से अलग थे।
भगत सिंह को पता था कि अहिंसा आंदोलन से कुछ प्राप्त नहीं होने वाला सिर्फ संघर्ष ही एकमात्र मार्ग है।
भगत सिंह जी भाषा के अच्छे जानकार थे, उन्हें हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा जैसे का अच्छा ज्ञान था, उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से भाषा का अच्छा ज्ञान लिया।
क्रांतिकारी भगत सिंह जी अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रतिशोध में तत्कालीन केंद्रीय संसद में 8 अप्रैल,1929 को बम और पर्चे फेंके थे।
इसलिए 23 मार्च,1931 को भगत सिंह और सुखदेव व राजगुरु को “लाहौर षडयंत्र” के आरोप में फांसी दे दी गई।
(freedom fighters of india)
गांधी जी ( जन्म 2 अक्टूबर,1869 – मृत्यु 30 जनवरी,1948 )
महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी हे।
मोहनदास करमचंद गांधी जी को “बापू” और “राष्ट्रपिता” के नाम से भी संबोधित किया जाता हे।
पहली बार गांधी जी को “बापू” बोल कर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया था।
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869, मे गुजरात के पोरबंदर मे हुआ था।
गांधी जी के पिता का नाम करमचंद गांधी था, वह काठियावाड़ मे पोरबंदर के दीवान थे ।
महात्मा गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था।

गांधी जी के पिता धार्मिक रूप से हिंदू और मोध जाति के बनिया थे।
गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट मे की थी।
महात्मा गांधी जी ने वकालत की शिक्षा लंदन से संपूर्ण की थी।।
गांधी जी के दो भाई और एक बहन थी, वह सबसे छोटे भाई थे।
महात्मा गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ था।
माधव देसाई, गांधी जी के निजी सचिव और करीबी थे।
महात्मा गांधी जी की हत्या 30 जनवरी,1948 में बिड़ला हाउस के परिसर में हुई थी।
हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जी का जन्मदिन “अंतरराष्ट्रीय अंहिसा दिवस” के रूप मे पुरे विश्व में मनाया जाता है।
महात्मा गांधी द्वारा आंदोलन
- असहयोग आंदोलन
- नमक सत्याग्रह
- भारत छोड़ो आंदोलन
- चंपारण सत्याग्रह
महात्मा गांधी जी अहिंसावादी व्यक्ति थे, सभी भारतीय उनके अहिंसावादी विचारधारा से प्रभावित होकर बड़े स्तर पर उनका समर्थन किया।
गांधी जी की अहिंसावादी विचारधारा और वीर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
सरदार वल्लभ भाई ( जन्म 31 अक्टूबर,1875 – मृत्यु 15 दिसंबर,1950)
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31अक्टूबर, 1875 को गुजरात में स्थित नडियाद जिले में लेवा पटेल परिवार में हुआ।
वल्लभ भाई पटेल की माता का नाम लाडबा देवी और पिता का नाम झवेरभाई पटेल था।
वो चार भाई थे, वह परिवार में सबसे छोटे भाई थे।
उन्होंने लंदन में वकील की पढ़ाई पूरी की और अहमदाबाद में वकालत करने लगे।
भारतीय गणराज्य के पिता थे सरदार वल्लभ भाई पटेल।
स्वतंत्रता आन्दोलन
स्वतंत्रता आन्दोलन में वल्लभ भाई पटेल ने गांधीजी का साथ दिया।
1918 में खेडा संघर्ष से वल्लभ भाई पटेल ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपना पहला योगदान दिया।
गुजरात का खेडा गांव भयंकर सूखे की चपेट में आ गया था, किसानों ने ब्रिटिश सरकार से भारी कर में राहत की मांग की।
ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया तो वल्लभ भाई पटेल ने गांधीजी सहित किसानों का नेतृत्व किया और किसानों को ब्रिटिश सरकार को कर देने के लिए मना किया।
आखिरकार ब्रिटिश सरकार को मांग माननी पड़ी और करों में राहत दी गयी, यह वल्लभ भाई पटेल की पहली जीत थी।
वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में वर्ष 1928 में हुआ बारडोली सत्याग्रह, एक मुख्य किसान आंदोलन था।
ब्रिटिश सरकार ने किसानो के कर को तीस प्रतिशत तक बढ़ाया, वल्लभ भाई पटेल ने आगे आकर इसका विरोध किया।
अंग्रेजो ने सत्याग्रह आंदोलन को दबाने की पूरी कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए और अंत में विवश होकर उनकी मांगों को मान लिया।
गृहमंत्री के रूप में
1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में एक विशेष भूमिका निभाई।

जब भारत स्वतंत्र हुआ और पटेल गृह मंत्री बने तब उनकी पहली प्राथमिकता 562 देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में जोड़ना था।
अपने विवेक-बुद्धि से इसे पूरा भी करके दिखाया।
भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे “भारत का लौह पुरूष” कहा जाता है।
सरदार पटेलने वीपी मेनन के साथ मिलकर सभी देसी रियासतों को भारत में जोड़ने का काम किया।
तीन को छोडकर बाकी सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया।
केवल जम्मू और कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ रियासत विलय के लिए राज़ी नहीं थे।
जूनागढ के नवाब 15 अगस्त,1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी, लेकिन जनता हिंदू थी और भारत में विलय के पक्ष में थी।
नवम्बर 1947 को भारतीय सैनिकों ने जूनागढ को नवाब से मुक्त करवाया और फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह हुआ जो भारत के पक्ष में था।
निजाम ने हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य घोषित किया और पाकिस्तान के समर्थन से हथियार जमा करने लगा।
13 सितंबर,1948 को हैदराबाद में सही समय पर सरदार पटेल ने सेना भेजी और तीन दिन के भीतर ही निजाम ने भारत में विलय का एलान किया।
जम्मू और कश्मीर को नेहरू ने अपने पास रख लिया और एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या बताकर, जम्मू और कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्रसंघ में स्थानांतरित कर दिया।
नेहरू की गलती की कीमत पूरा देश अभी तक चूका रहा हे।
नेहरू ने सोमनाथ भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का विरोध किया।
लेकिन सरदार पटेल ने अपना संकल्प पूरा किया और मंदिर का पुन: र्निर्माण करवाया।
15 दिसंबर,1950 को भारतीय गणराज्य के पिता सरदार वल्लभ भाई पटेल का देहान्त हो गया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल हमेशा भारतीयों के दिल में रहेंगे।
वल्लभ भाई पटेल को 1991 में मरणोपरांत “भारत रत्न”से सम्मानित किया गया।
जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा बनाने का संकल्प लिया और उसे पूरा भी किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार पटेल को लौह पुरुष बताते हुए उनके याद में 31 अक्टूबर,2018 को “स्टेचू ऑफ यूनिटी” का शिलान्यास कर राष्ट्र को समर्पित किया।
“स्टेचू ऑफ़ यूनिटी” की ऊँचाई 182 मीटर है, जो विश्व में सबसे बड़ी मूर्ति है, प्रतिमा की अंदाजित लागत लगभग 3000 करोड़ है।
Thanks for reading about freedom fighters of india.